गीता माहात्मय


श्रीमद्भगवद्गीता वैदिक साहित्य में एक अनमोल रत्न है | वस्तुतः यह कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ नही है ,बल्कि भगवान श्रीवेदव्यास कृत श्री महाभारत ग्रन्थ का एक अंश मात्र है |

गीताशास्त्रमिदं पुण्यं यः पठेत् प्रयतः पुमान्|
विष्णोः पदमवाप्नोति भयशोकादिवर्जितः ||1||

जो मनुष्य शुद्ध चित्त होकर नियम पूर्वक श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करता है, इसका स्वाध्याय करता है | वह श्री विष्णु का पद परम धाम को प्राप्त करता है ||

उस परम धाम में वैकुण्ठ में या गोलोक में भय ,शोक और मोह नही है | भय शोक आदि इस भौतिक जगत में प्रत्येक जीव को कष्ट देते है | तो श्रीमद्भगवद्गीता के स्वाध्याय कर्त्ता को परमधाम की प्राप्ति हो जाती है | जो श्रीमद्भगवद्गीता का प्रामाणिक व्याख्या सहित स्वाध्याय करता है उसे भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति प्राप्त होती है और श्रीकृष्ण की भक्ति करके वह भगवान् के परमधाम को प्राप्त करता है |

मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने |
सकृद्गीताम्भसि स्नानं संसारमल नाश नम्||2||

"जल में प्रतिदिन किया हुआ स्नान मनुष्य के केवल शारीरिक मल का नाश करता है | अगर कोई श्रीमद्भगवद्गीता रूपी दिव्य जल में एक बार भी स्नान कर ले तो उसके संसार रूपी मल का नाश हो जाता है |"

प्रत्येक जीव प्रत्येक आत्मा इस संसार में अज्ञानता के कारण अपने कर्मों के कारण जन्म मरण के चक्र में फँसा हुआ है | उसे न चाहते हुए भी बारम्बार जन्म लेना पड़ता है, मरना पड़ता हैं, वृद्धावस्था को प्राप्त करना पड़ता है और व्याधि रोगों को सहना करना पड़ता है | तो ये जो जन्म, मृत्यु, जरा और व्याधि का जो बारम्बार का जन्म का चक्र है इसी का नाम है संसार मल |

तो जो श्रीमद्भगवद्गीता रूपी दिव्य जल में एक बार भी स्नान कर लेता है अर्थात् एक बार भी श्रीमद्भगवद्गीता को स्वाध्याय कर लेता है,समझ लेता है तो उसके संसार रूपी मल का नाश हो जाता है |

तो क्या ऐसा सम्भव है की श्रीमद्भगवद्गीता में एक बार गोता लगाने से जन्म मरण का चक्र मिट जाएगा ?

केवल श्रीमद्भगवद्गीता को बाहरी रूप से पढ़ लेना स्वाध्याय कर लेना ये गीता रूपी जल में स्नान नही है | गीता रूपी दिव्य जल में स्नान से तात्पर्य है कि जिसने श्रीमद्भगवद्गीता के दिव्य रहस्य को समझ लिया, गूढ़ रहस्यों को समझ लिया और प्रतिपाद्य विषयों को समझ लिया | श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय है परमेश्वर श्रीकृष्ण है, श्रीकृष्ण की भक्ति ही उन्हें प्रसन्न करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है, और श्रीकृष्ण की प्रसन्नता या श्रीकृष्ण का प्रेम या श्रीकृष्ण की प्रीति ही भक्ति का मुख्य प्रयोजन है; मुख्य उद्देश्य है | ये श्रीमद्भगवद्गीता के गूढ़ रहस्य है | अनेक लोग श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ते तो है किन्तु श्रीमद्भगवद्गीता के गूढ़ रहस्यों से परिचित नहीं हो पाते | कोई सोचता है की श्रीमद्भगवद्गीता का रहस्य कर्म योग है, कोई सोचता है ज्ञान योग है, कोई सोचता है ध्यान योग है किन्तु विचार पूर्वक निर्णय किया जाए तो गीता से ही स्पष्ट हो जाता है कि श्रीमद्भगवद्गीता का जो रहस्य है वो भक्ति योग है | श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार श्रीकृष्ण ही मूल परंब्रह्म है,परमेश्वर है किन्तु अनेक गीता के अध्येता अनेक गीता के विद्वान श्रीमद्भगवद्गीता के इन गूढ रहस्यों से वंचित है वो श्रीकृष्ण को परमेश्वर तो क्या भगवान् विष्णु का अवतार तक नही मानते श्रीकृष्ण को मात्र एक महापुरुष या सतयुग का प्रथम राजकुमार या कोई योगिराज समझते है श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ समझते है | श्रीकृष्ण न केवल श्रीमद्भगवद्गीता के वक्ता है अपितु श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता की आत्मा है | श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता के प्रतिपाद्य विषय है | श्रीकृष्ण ही परंब्रह्म परमेश्वर है, श्रीकृष्ण की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ साधन है और श्रीकृष्ण प्रेम ही सर्वश्रेष्ठ प्रयोजन है साध्य है | तो जो इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता के गूढ़ रहस्यों को समझ लेता है और श्रीमद्भगवद्गीता के द्वारा प्रदर्शित अनन्य भक्ति में डूब जाता है वही वास्तव में श्रीमद्भगवद्गीता रूपी जल में स्नान करता है | गीता के जल में स्नान करने से तात्पर्य है की श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति में सरोबार हो जाना,श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति में डूब जाना | तो जो एक बार भी श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति में डूब जाता है संसारमल नाश नम् उसके संसार रूपी मल का नाश हो जाता है वह जन्म मरण के चक्र से छूट जाता है भगवान् के परमधाम को प्राप्त कर लेता है |

गीता सुगीता कर्त्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः |
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिः सृता ||3||

गीता सुगीता कर्त्तव्या- इसलिए प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है की वह उत्तम ढंग से श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन करें, श्रवण करें | जिसने श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन कर लिया उसको नाना प्रकार के कर्मकाण्ड के शास्त्रो में, ब्रह्मज्ञान के शास्त्रो में, निराकारब्रह्म ज्ञान के शास्त्रों में,ध्यान योग आदि के शास्त्रों में प्रवृत होने की आवश्यकता नही है |

यह श्रीमद्भगवद्गीता स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण के मुख कमल से प्रकट हुई है | यह कोई साधारण शास्त्र नही है यह भगवद् वाणी है |

गीता प्रतिपाद्य

श्रीकृष्ण को जानो।
श्रीकृष्ण को मानो।
श्रीकृष्ण के बन जाओ।

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