सम्प्रदाय


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भगवान् श्री राधाकृष्ण युगल के संयुक्त अवतार भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा प्रवर्तित श्रीगौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय अथवा श्रीचैतन्य वैष्णव सम्प्रदाय श्रीमद्भागवत महापुराण के सिद्धान्तों पर आधारित एक अद्वित्तीय भक्ति सम्प्रदाय है। यद्यपि यह सम्प्रदाय अन्य वैष्णव सम्प्रदायों की अपेक्षा अर्वाचीन(नवीन)है;फिर भी यह साक्षात् भगवान्(श्रीचैतन्य महाप्रभु) से आरम्भ होने के कारण पूर्णतः प्रामाणिक और सर्वश्रेष्ठ है।


गौड़ीय सम्प्रदाय से पूर्व भारतवर्ष में मुख्यतः चार प्राचीन वैष्णव सम्प्रदाय प्रचलित थे-


1)-ब्रह्म सम्प्रदाय:

इस सम्प्रदाय के मूल प्रचारक श्रीब्रह्मा जी माने जाते हैं;इसलिए उन्हीं के नाम पर इसे ब्रह्म सम्प्रदाय कहा जाता है।श्रीब्रह्मा जी ने साक्षात् भगवान् श्रीविष्णु से शिक्षा प्राप्त की थी,इसलिए इस सम्प्रदाय के मूल गुरु श्रीविष्णु जी ही हैं।कलियुग में इस सम्प्रदाय के महान् प्रचारक श्री मध्वाचार्य जी हुए हैं;इसलिए उनके नाम पर इसे मध्व सम्प्रदाय अथवा संयुक्त रूप से ब्रह्म-मध्व सम्प्रदाय भी कहा जाता है।

2)-श्री सम्प्रदाय:

इस सम्प्रदाय की मूल प्रचारिका माता लक्ष्मी जी मानी जाती है;इसलिए उन्हीं के नाम पर इसे 'श्री' सम्प्रदाय कहा जाता है।माता लक्ष्मी ने साक्षात् श्रीविष्णु जी से शिक्षा प्राप्त की थी,इसलिए इस सम्प्रदाय के मूल गुरु भी श्रीविष्णु ही हैं।कलियुग में इस सम्प्रदाय के महान् प्रचारक श्रीरामानुजाचार्य जी हुए हैं,इसलिए उनके नाम पर इसे रामानुज संप्रदाय अथवा संयुक्त रूप से श्री-रामानुज सम्प्रदाय भी कहा जाता है।

3)-रुद्र सम्प्रदाय:

इस सम्प्रदाय के मूल प्रचारक श्रीशिवजी माने जाते हैं;इसलिए उन्हीं के नाम पर इसे रुद्र सम्प्रदाय कहा जाता है।श्रीशिवजी ने भी श्रीविष्णु जी से ही शिक्षा प्राप्त की थी,इसलिए इस सम्प्रदाय के मूल गुरु भी श्रीविष्णु ही हैं। कलियुग में इस सम्प्रदाय के महान् प्रचारक श्रीविष्णु स्वामी जी हुए हैं,इसलिए उनके नाम पर इसे विष्णुस्वामी सम्प्रदाय अथवा संयुक्त रूप से रुद्र-विष्णुस्वामी सम्प्रदाय भी कहा जाता है।

4)-कुमार सम्प्रदाय:

इस सम्प्रदाय के मूल प्रचारक सनक,सनन्दन,सनातन व सनत्कुमार-ये चार कुमार माने जाते हैं;इसलिए उन्हीं के नाम पर इसे कुमार सम्प्रदाय कहा जाता है।कुमारगणों ने भी श्रीविष्णु जी से ही शिक्षा प्राप्त की थी,इसलिए इस सम्प्रदाय के मूल गुरु भी श्रीविष्णु जी ही हैं।कलियुग में इस सम्प्रदाय के महान् प्रचारक श्रीनिम्बार्काचार्य जी हुए हैं,इसलिए उनके नाम पर इसे निम्बार्क सम्प्रदाय अथवा कुमार-निम्बार्क सम्प्रदाय भी कहा जाता है।
उपर्युक्त चारों ही सम्प्रदाय भगवान् श्रीविष्णु से आरम्भ होने से सतसम्प्रदाय हैं।इन चारों ही सम्प्रदायों में भगवान् को सच्चिदानन्द साकार माना जाता है।

5)-गौड़ीय सम्प्रदाय

गौड़ीय सम्प्रदाय स्वयं भगवान् श्री श्री राधा कृष्ण के संयुक्त अवतार श्री चैतन्य महाप्रभु के द्वारा प्रवर्तित सम्प्रदाय है। श्री चैतन्य महाप्रभु ही इस सम्प्रदाय के मूल आचार्य है। यह सम्प्रदाय अन्य किसी वैष्णव सम्प्रदाय की शाखा नही है। स्वयं भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु गोलोक प्राप्ति हेतु रागानुगा भक्ति प्रचार हेतु इस धरा धाम पर अवतरित हुए थे और उन्होंने श्रीमद्भागवतमहापुराण को सर्वप्रमाण चक्रवर्ती स्वीकार किया था इसलिए गौड़ीय सम्प्रदाय श्रीमद्भागवतमहापुराण पर आधारित है और इस सम्प्रदाय में राधा कृष्ण का किशोर स्वरुप उपास्य है, पूज्य है। इस सम्प्रदाय में भुक्ति, सिद्धि , मुक्ति से बड़कर कृष्ण प्रेम को माना गया है जोकि पंचम पुरुषार्थ है। कृष्ण प्रेम में भी वैधभावोत्थ कृष्ण प्रेम और रागानुगाभावोत्थ कृष्ण प्रेम ये दो भेद है। श्री चैतन्य महाप्रभु ने मुख्य रूप से रागानुगाभावोत्थ कृष्ण प्रेम की शिक्षा प्रदान की है इसलिए कलियुग में इस भूतल पर सर्वश्रेष्ठ अध्यात्मिक शिक्षा यदि कही विद्यमान है तो श्री चैतन्य सम्प्रदाय या गौड़ीय सम्प्रदाय में विद्यमान है।


गौड़ीय सम्प्रदाय की विशेषताए:-


  • गौड़ीय सम्प्रदाय के आराध्य श्रीराधाकृष्ण है जबकि अन्य संप्रदाय में श्री लक्ष्मी नारायण है।
  • गौड़ीय सम्प्रदाय में श्रीविष्णु को श्रीकृष्ण का स्वांश रूप माना जाता है जबकि अन्यो में श्री कृष्ण को विष्णु का रूप माना गया है।
  • गौड़ीय सम्प्रदाय में श्रीराधा को श्रीकृष्ण की ह्लादिनी शक्ति माना गया है जबकि अन्य सम्प्रदायों में श्री राधा को लक्ष्मी का अवतार माना गया है।
  • गौड़ीय सम्प्रदाय में गोपियों की भक्ति को सर्वोपरि माना गया है जबकि अन्य सम्प्रदायों में ब्रह्मा, शिव आदि की भक्ति को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।
  • गौड़ीय सम्प्रदाय में कृष्णप्रेम, गोलोक धाम को साध्य(प्रयोजन या चरम उद्देश्य) माना गया है जबकि अन्य सम्प्रदायों में वैकुंठ को माना गया है।
  • गौड़ीय सम्प्रदाय में साधना भक्ति के रूप में रागानुगा भक्ति को भगवत प्राप्ति का उपाय बताया गया है जबकि अन्य सम्प्रदायों में वैधी भक्ति को बताया गया है।

श्री तेजस्वी दास जी द्वारा संस्थापित संस्था- GBPS ट्रस्ट वृन्दावन, गौड़ीय सम्प्रदाय की ही शाखा है। जिसमे श्रील जीव गोस्वामी पाद जी की शिक्षाओं के अनुसार भक्ति का ज्ञान उनके ग्रंथ श्री भागवत संदर्भ (षट-संदर्भ)और गोपाल-चम्पू के अनुसार दिया जाता है।

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