श्री चैतन्य महाप्रभु साक्षात् श्रीकृष्ण के अवतार है। श्री गौड़ीय में चैतन्य महाप्रभु को साक्षात् भगवान माना गया है। लेकिन गौड़ीय सम्प्रदाय से बाहर बहुत से सम्प्रदाय ऐसे है जिनमें श्रीचैतन्य महाप्रभु को साक्षात् भगवान स्वीकार नहीं किया गया। वे सब चैतन्य महाप्रभु को एक संत या उच्चकोटि के भक्त के रूप में स्वीकार करते है। विद्वान लोग तब तक किसी को भगवान नही मानते जब तक उनके भगवान होने के प्रमाण शास्त्रों में उपलब्ध न हो।
जैसे वैदिक साहित्य में श्रीकृष्ण के भगवान होने के प्रमाण उपलब्ध है वैसे ही चैतन्य महाप्रभु के भी उपलब्ध है।
लेकिन लोग चैतन्य महाप्रभु के भगवान होने के शास्त्रीय प्रमाणों से अनभिज्ञ है। उन प्रमाणों के वर्णन यहाँ किया जा रहा है।
अहं पूर्णो भविष्यामि युगसन्धौ विशेषतः।
मायापुरे नवद्वीपे भविष्यामि शचीसुतः।। (गरुड़ पुराण)
मैं मायापुर नवदीप धाम में कलियुग की प्रथम संध्या में शची के पुत्र के रूप में अपने पूर्णरूप में प्रकट होऊंगा।
कले: प्रथमसंध्यायां गौरांगोऽहम् महीतले।
भागिरथितटे भूम्नि भविष्यामि सनातनः।। (ब्रह्म पुराणे)
मैं कलियुग की प्रथम संध्या में भगीरथी के तट पर श्री गौरांग रूप में भूतल पर आऊँगा।
कलौ संकीर्तनारंभे भविष्यामि शचीसुतः।
स्वर्णधुतीं समास्थाय नवद्वीपे जनाश्रये।।
शुद्धो गौर: सुदीर्घाङ्गों गङ्गातीर- समद्भवः।
दयालु: कीर्तनग्राही भविष्यामि कलौ युगे।। (वायुपुराण )
हे देवताओ! मैं कलियुग में श्री नवद्वीप धाम में गंगा जी किनारे प्रकट होकर जन सामान्य के बीच नाम संकीर्तन का प्रचार करूँगा । मै गौर वर्ण आजानुलम्बित भुजादि सुदीर्घ अंगों से युक्त होकर पापी जीवों पर कीर्तन के माध्यम से दयालुता वर्षण करूँगा ।
कृष्णवर्णम् त्विषाकृष्णं सांङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम्।
यज्ञै: संकीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधस:।। (श्री.भा. 11.5.32)
श्री करभाजन मुनि ने श्री निमि के प्रति कहा-
'कलियुग में बुद्धिमान लोग संकीर्तन यज्ञ के द्वारा गौरकान्तियुक्त, कृष्ण का वर्णन करने वाले और अंग-उपांग ही जिनके अस्त्र व पार्षद है; ऐसे भगवान् श्री गौरसुन्दर की पूजा किया करते है।'
श्रीकृष्ण को जानो।
श्रीकृष्ण को मानो।
श्रीकृष्ण के बन जाओ।