शिक्षाएं


अध्यात्म विचार (पार्ट - 1)


आध्यात्मिक ज्ञान की शुरुआत आत्मा और परमात्मा विषयक ज्ञान से प्रारंभ होती है। सर्वप्रथम आत्मा और शरीर के बारे में जानकारी लीजिए।

🌹 शरीर:- शरीर जड़ है, नाशवान है और पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि , वायु और आकाश) से निर्मित है। इस संसार में 84 लाख प्रकार के शरीर है।
पद्मपुराण के अनुसार:-
जलजानवलक्षाणि स्थावरः लक्ष विशन्ति।
कृमियों रुद्र संख्यकाः पक्षिणाम् दश लक्षणं।
त्रिंशलक्षणि पशवः चतुर्लक्षणि मानुषा:।

🌹 अर्थात्: - जल में रहने वाली योनियाँ 9 लाख है। स्थावरों (वृक्षो) की संख्या 20 लाख है। कीड़ों तथा सरीसृपों की योनियां 11 लाख है और पक्षियों की 10 लाख। चौपायों की योनियां 30 लाख है तथा मनुष्यों की 4 लाख हैं। इन शरीरों का जन्म-मृत्यु होता है।

🌹 आत्मा :- आत्मा को जीव भी कहते है क्योंकि यह शरीर को जीवनी शक्ति प्रदान करता है। आत्मा अविनाशी है, इसको किसी भी प्रकार नष्ट नहीं किया जा सकता।

गीता (2/23)


नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।

🌹 अर्थात्: - आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सूखा नहीं सकती। यह आत्मा सच्चिदानंद (सत्, चित् और आनंद से बना) है। आत्मा, भगवान श्री कृष्ण की शक्ति का अंश है और इसका कभी भी जन्म या मृत्यु नही होता।

गीता (2/22)


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।

🌹 अर्थात्: - जिस प्रकार मनुष्य अपने पुराने कपड़ों को त्यागकर दूसरे-दूसरे वस्त्रों को धारण करता है उसी प्रकार आत्मा भी पुराने वस्त्रों (शरीर) को त्यागकर नये वस्त्र (शरीर) धारण करता है। एक ही आत्मा 84 लाख योनियों में अपने अपने कर्मो के परिणामस्वरूप भ्रमण कर रहा है।

आत्मा दो प्रकार की है:- नित्य मुक्त और नित्य बद्ध

गीता (15.16)

द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।

नित्य मुक्त आत्मा:- भगवान के धाम में रहती है।
नित्य बद्ध आत्मा:- 84 लाख योनियों में अपने कर्मो के परिणामस्वरूप भ्रमण कर रही है।


अध्यात्म विचार (पार्ट - 2)


आत्मा का स्वामी कौन...?
रामायण में तुलसीदास जी कहते है: -
ईश्वर अंश जीव अविनाशी।

🌹 अर्थात्: - "जीव ईश्वर का अंश है" तो वह ईश्वर कौन है?

श्रीमद्भगवद्गीता (15.7) में भगवान श्री कृष्ण कहते है: -

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।

🌹 अर्थात्: - इस संसार में समस्त जीव मेरे सनातन अंश है। संसार से तात्पर्य केवल पृथ्वी लोक नहीं है, ब्रह्मांड के सम्पूर्ण 14 लोक है। पृथ्वी से ऊपर 6 लोक ( भुवर्लोक, स्वर्गलोक, महर्लोक , जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक) तथा पृथ्वी से नीचे 7 लोक ( अतललोक, वितललोक, सुतललोक, तलातल लोक, महातल लोक, रसातल लोक और पाताल लोक) है। ऊपर व नीचे के लोको में जितने भी प्राणी रहते है सभी श्रीकृष्ण के अंश है। ऊपर के लोको में देवता, ऋषि, प्रजापति इत्यादि रहते है। समस्त देवता, प्रजापति, ऋषि आदि भी श्रीकृष्ण के अंश है।

भागवत (1.3.27)


ऋषियों मनवो देवा मनुपुत्रा महौजसः।
कलाः सर्वे हरेरेव सप्रजापतयस्तथा।।

🌹 अर्थात्: - ऋषि, मनु, देवता, प्रजापति, मनुपुत्र और जितने भी महान् शक्तिशाली हैं, वे सब-के-सब भगवान के ही अंश हैं।
निष्कर्ष यह निकलता है कि देवता भी जीव ही है। समस्त जीवों के (जिनमे देवता भी सम्मिलित है ) स्वामी एकमात्र श्री कृष्ण है। जीव तो श्रीकृष्ण का दास है।
जीवेर स्वरूप हय कृष्णेर नित्यदास।
प्रत्येक दास का कर्तव्य है कि वह अपने स्वामी श्रीकृष्ण की सेवा करें।


अध्यात्म विचार (पार्ट - 3)


श्री कृष्ण की सेवा कैसे करें...?
श्रीकृष्ण की सेवा का नाम भक्ति है।

भक्तिरसामृतसिंधु में श्रील रूपगोस्वामी पाद जी ने कहा है कि भक्ति 64 प्रकार से की जा सकती है। इन 64 तरह की भक्ति में हरिनाम को सर्वश्रेष्ठ साधन बताया गया है।

हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम एव केवलं।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।
(वृहदनारदीय पुराण)

🌹 अर्थात्: - कलियुग में भगवान की प्राप्ति का साधन एकमात्र हरिनाम है।
ब्रह्मयामल शास्त्र में श्रीशिव जी माता पार्वती को कहते है -

हरिं विना नास्ति किञ्चित पाप निस्तारक कलौ।

🌹 अर्थात्: - कलियुग में हरिनाम के बिना कोई भी साधन सरलता से पाप निस्तारक नहीं है। अतः श्रीकृष्ण की भक्ति या सेवा हरि नाम जाप या हरि नाम कीर्तन द्वारा करे ।


अध्यात्म विचार (पार्ट - 4)


हरिनाम, मंत्र से किस प्रकार भिन्न है...?
मंत्र:- जिसमे प्रारम्भ में ऊँ,क्लीं, ह्रीं आदि बीजमन्त्र और मध्य या अंत में नमः,स्वाहा इत्यादि सम्मानसूचक पद जुडे हों तो वह छन्दमय रचना मंत्र कहलाता है। जैसे 'ॐ नम: भगवते वासुदेवायः' मंत्र है। क्लीं कृष्णाय नम: मन्त्र है।
नाम :- जिसमे हरि के नाम के साथ कोई बीजमन्त्र व सम्मानसूचक पद न जुड़ा हो तो छन्दमय रचना वह नाम कहलाता है।

🌷 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । 🌷
🌷 हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। 🌷


मन्त्र जाप से श्रेष्ठ है हरि नाम
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🌹 मन्त्र जपने के लिए दीक्षा आवश्यक है जबकि हरिनाम महामंत्र के लिए दीक्षा की कोई अवश्यकता नहीं है।
🌹 मन्त्र का जप निर्धारित समय पर ही किया जा सकता है जैसे ब्रह्म मुहूर्त या संध्या काल जबकि हरिनाम किसी भी समय जप सकते है। जैसे:- सुबह, दोपहर, शाम, रात्रि या अर्धरात्रि।
🌹 मन्त्र का बिल्कुल शुद्ध उच्चारण अत्यधिक आवश्यक है अन्यथा उल्टा असर हो जाता है जबकि हरिनाम जपते समय यदि अशुद्ध उच्चारण हो भी जाता है तो भी उसका प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता।
🌹 मन्त्र को मन ही मन में जपने से सबसे अधिक फल मिलता है जबकि हरिनाम को जोर जोर बोल कर गाने से सबसे अधिक फलदायी होता है।
🌹 मन्त्र जाप उचित आसन पर बैठ कर ही करना चाहिये जबकि हरिनाम महामन्त्र का जाप हम चलते-फिरते, उठते-बैठते, ट्रेन, कार, हवाई जहाज में सफ़र करते समय कही भी कर सकते है।
🌹 मन्त्र जपने के लिए शुद्धि की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। जैसे मन्त्र का जप करने वाले का आहार शुद्ध होना चाहिये, पवित्र स्थान होना चाहिये, वस्त्र शुद्ध होने चाहिये जबकि हरिनाम महामन्त्र जप करने के लिए किसी भी प्रकार की शुद्धि की आवश्यकता नही है अर्थात् स्नान करके या बिना स्नान किये भी जप कर सकते है। हरि नाम मंत्र जाप से श्रेष्ठ है ।

अध्यात्म विचार (पार्ट - 5)


हरि के अनंत नामों में से कौन से नाम का जप करें...?
यद्यपि हरि के अनंत नाम है तथापि हरि के समस्त नामो में से कृष्ण और राम नाम सर्वश्रेष्ठ है ।

सहस्रनाम्नाम् पुण्यानां त्रिरावृत्त्या तु यत् फलम्।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य नामैकं तत् प्रयच्छति।।
(ब्रह्माण्ड पुराण-अष्टोत्तरशतनाम माहात्म्य)

"पवित्र सहस्रनाम तीन बार पाठ करने का जो फल है,एक कृष्णनाम एक बार उच्चारण करने से वही फल मिलता है।"

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनामभिस्तुल्यं रामनाम वरानने।।
(पद्म पुराण)

"मैं राम राम राम इस प्रकार उच्चारणपूर्वक मनोरम राम में रमता हूँ; क्योंकि हे सुमुखी! एक राम नाम विष्णुसहस्रनाम के बराबर फल देता है। निष्कर्ष यह निकला कि हरि के अंनत नामो में से कृष्ण नाम और राम नाम सबसे अधिक शक्तिशाली नाम है। हरि नाम महामन्त्र कृष्ण और राम नाम से ही बना है।👇


🌷 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 🌷
🌷हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। 🌷


 

श्रीकृष्ण को जानो।
श्रीकृष्ण को मानो।
श्रीकृष्ण के बन जाओ।

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